अर्थ- हे प्रभू आपने तुरंत तरकासुर को मारने के लिए षडानन (भगवान शिव व पार्वती के पुत्र कार्तिकेय) को भेजा। आपने ही जलंधर (श्रीमददेवी भागवत् पुराण के अनुसार भगवान शिव के तेज से ही जलंधर पैदा हुआ था) नामक असुर का संहार किया। आपके कल्याणकारी यश को पूरा संसार जानता है।
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥
अर्थ- हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
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जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
शंकर हो संकट के website नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
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जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।